# अनुक्रमणिका
1 हम लड़ेंगे साथी - पाश2 मैं पूछता हूँ आसमान में - पाश
3 हर किसी को नहीं आते - पाश
4 नौजवान साथियो --नंदलाल मंडल
5 दरिया की कसम… ---- स्त्री उत्सव ८९
6 लहू का रंग एक है….
7 गीत गा रहे है… -- छात्र युवा संघर्ष वाहिनी
8 दमादम मस्त कलंदर… -- प्रेम धवन
9 हिन्द के बहादुरों -- मेघःश्याम इंगले
10 मंदिर,मस्जिद,गिरजाघर ने… --- विनय महाजन
11 इसलिए राह संघर्ष… -- आंदोलन के गीत
12 बेटी हूँ मैं बेटी… -- राजस्थान महिला संघटन
13 ले मशाले चल पडे है… -- वल्लीसिह चीमा
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1 हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी
क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ़्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
जब तक बन्दूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे
2 मैं पूछता हूँ आसमान में
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक़्त इसी का नाम है
कि घटनाएँ कुचलती चली जाएँ
मस्त हाथी की तरह
एक पूरे मनुष्य की चेतना ?
कि हर प्रश्न
काम में लगे ज़िस्म की ग़लती ही हो ?
क्यूँ सुना दिया जाता है हर बार
पुराना चुटकुला
क्यूँ कहा जाता है कि हम ज़िन्दा है
जरा सोचो -
कि हममे से कितनों का नाता है
ज़िन्दगी जैसी किसी वस्तु के साथ !
रब की वो कैसी रहमत है
जो कनक बोते फटे हुए हाथों-
और मंडी के बीचोबीच के तख़्तपोश पर फैली हुई माँस की
उस पिलपली ढेरी पर,
एक ही समय होती है ?
आख़िर क्यों
बैलों की घंटियाँ
और पानी निकालते इंजन के शोर में
घिरे हुए चेहरो पर जम गई है
एक चीख़तीं ख़ामोशी ?
कौन खा जाता है तल कर
मशीन मे चारा डाल रहे
कुतरे हुए अरमानों वाले डोलो की मछलियाँ ?
क्यों गिड़गिड़ाता है
मेरे गाँव का किसान
एक मामूली से पुलिसए के आगे ?
क्यों किसी दरड़े जाते आदमी के चौंकने के लिए
हर वार को
कविता कह दिया जाता है?
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
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3 हर किसी को नहीं आते
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग के सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली को पसीने नहीं आते
शेल्फ़ों में पड़े
इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़मी है
झेलनेवाले दिलों का होना
नींद की नज़र होनी लाज़मी है
सपने इसलिए हर किसी को नहीं आते
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4 नौजवान साथियो….
नौजवान साथियो इस देश की तस्वीर बदल दो
जो गिरे हुए है उन्हे उठेना का बल दो ll
नौजवान साथियो….
बैठो नही हाथ पे रख हाथ, को सुनो इस बात को
ऐसा कुछ करो कि सारी मुश्किले तुमसे मात हो
मंजिल है सामने कुछ कदमो से चल दो ll
नौजवान साथियो….
भुख मिते और गरिबी घटे बदनसीबी छुटे
दुःशासन के गंदे हाथो से द्रोपदी न लुटे
कंस कोई हुंकारे उसे कुचल दो ll
नौजवान साथियो….
दूर बहुत जाना है हमको अभी चलो मिलके सभी
मिलके तय करेंगे अपना रास्ता मिलेगा लक्ष तभी
एकता से भरा हुआ एक-एक पाल दो ll
नौजवान साथियो….
--नंदलाल मंडल
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5 दरिया की कसम…
दरिया की कसम मौजों की कसम
ये ताना बाना बदलेगा
तू खुद को बदल, तू खुद को बदल
तब ही तो जमाना बदलेगा
तू चुप रह कर जो सहती रही
तो क्या ये जमाना बदला है
तू बोलेगी मुँह खोलेगी
तब ही तो जमाना बदलेगा, तू खुद को बदल
दस्तूर पुराने सदियों के
ये आयें कहाँ से क्यों आयें
कुछ तो सोचो, कुछ तो समझो
ये क्यों तुमने है अपनाये
तब ही तो जमाना बदलेगा, तू खुद को बदल
ये पर्दा तुम्हारा कैसा है
क्या ये मजहब का हिस्सा है
कैसा मजहब, किसका पर्दा
ये सब मर्दो का किस्सा है
तब ही तो जमाना बदलेगा, तू खुद को बदल
आवाज उठा, कदमों को मिला
रफतार जरा कुछ और बढा
मशरिफ से उठो मगरिब से उठो
उत्तर से उठो दक्षिण से उठो
फिर सारा जमाना बदलेगा, तू खुद को बदल
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6 लहू का रंग एक है….
लहू का रंग एक है, अमीर क्या गरीब क्या
जो बने है एक खाकसे, तो दूर क्या करीब क्या
लहू का रंग एक है...
वही तन वहीं है जान कब तलक छुपाओंगे
पहन के रेशमी लिबास की तुम बदल ना जाओंगे
सभी है एक जाती हम, सवर्ण क्या अवर्ण क्या
लहू का रंग एक है...
गरीब है तो इसलिए,की तुम अमीर हो गये
एक बादशहा हुआ, तो सौ फकीर हो गये
खता है सब समाज की, भले बुरे नसीब क्या
लहू का रंग एक है...
जो एक है तो फिर न क्यों दिलोका दर्द बाँट ले
जिगर की प्यास बाँट ले, लोगोंका प्यार बाँट ले
लगालो सबको तुम गले विषमता की वजह क्या
लहू का रंग एक है....
7 गीत गा रहे है….
गीत गा रहे है आज हम रागीनीको ढुँढते हुवे।
आ गए यहाँ जवाँ कदम, मंजिलों को ढुँढते हुवे।।
अब दिलो में ये उमंग है, ये जहाँ नया बसायेंगे।
जिंदगी का तौर आजसे, दोस्तोको हम सिखायेंगे।
फूल हम नये खिलायेंगे, ताजगी को ढुँढते हुवे।
रोग की तरह दहेज है, आज देशमें समाज में।
है तबाह आज आदमी, लूट पर टिके समाज में।
हम समाज भी बनायेंगे, मानवी को ढुँढते हुवे।।
फिर ना रो सके कोई दुल्हन, जोर जुल्म का न हो निशान।
मुस्कुरा उठे धरा गगन, हम रचेंगे ऐसी दास्तान।
यू वतन को हम सजायेंगे, हर खुशी को ढुँढते हुवे।।
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8 दमादम मस्त कलंदर…
दमादम मस्त कलंदर, अली के मस्त कलंदर
गोरे हकीम गयेरे भय्या, काले हकीम आये
बदल गयी है चाबी लेकीन, बदले नही हैं ताले।।
वोय मे क्या झुठ बोलिया, वोय मे क्या गलत बोलिया,
वोय मे क्या जहर घोलिया, कोईना, कोईना,कोईना.....
मैं हूँ थानेदार यारो, मैं हूँ सुभेदार
पहले एक मुर्गी खाता था, अब खाता हूँ चार....
मेरा नाम है बिरला यारो, मेरा नाम है टाटा
हम दोने ने मिलकर आधा-आधा भारत बाँटा....
मैं हूँ सेठ हजारीमलजी, सोने का बेपारी
असेंबली का मेंबर हूँ, करता हूँ चोरबाजारी....
मैं हूँ पंडीत जयजय शंकर, दया धरम का बंदा
रामनाम जप नित, खाता हूँ गौशाला का चंदा....
बन के अफसर किया हैं, मैने कितनों का कल्याण
भाई को दिलवाया ठेका, साला है कप्तान....
टैक्स के उपर रोज नया एक चढता जाये टैक्स
घटता जाये जीवन यारों, बढता जाये टैक्स....
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9 हिन्द के बहादुरों…
हिन्द के बहादुरों वक्त की पुकार है
बढना है, बढना है, सबसे आगे बढना है।।
दिलों मे जलती आग है हथेलियों पे जान है
हौसले बुलन्द है, गगन छुने वाले है
आँधियाँ चले, या बिजलियाँ गिरे यहाँ
हनुमान की छलांग ले के, तीर बनके चलना है।।
भूल जाओ प्रांत भाषा रंग भाव भेद को
एकता ते नाम सजाओ हिन्द भूमी को
टूटेंगे नही हम फूटेंगे नहीं हम
कारवां हमारा है कदम कदम बढाना है।।
हम है दूत शान्ति के विश्व को बताना है
जंगखोर हम नहीं अतीत भी गवाह है
यह बुध्द की धरा, यह गांधी की धरा है
नीति-धर्म,कर्म-योग आज हमको लाना है।।
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10 मंदिर,मस्जिद,गिरजाघर ने….
मंदिर,मस्जिद,गिरजाघर ने बाँट लिया भगवान को
धरती बाँटी, सागर बाँटा,मत बाँटो इन्सान को...
हिन्दू कहता मंदिर मेरा, काशी मेरा धाम है
मुस्लिम कहता मक्का मेरा अल्लाह का ईमान है
दोनों लडते लड लड मरते, लडते लडते खत्म हुए
दोनों ने एक दूजे पे ना जाने क्या क्या जुल्म किये
किसका ये मकसद है किसकी चाल है ये जान लो
धरती बाँटी, सागर बाँटा,मत बाँटो इन्सान को...
नेता ने सत्ता के खातिर कौमवाद से काम लिया
धर्म के ठेकेदार से मिलकर लोगों को नाकाम किया
भाई बटे टुकडे टुकडे मेँ, नेता का है मान बढा
वोट मिले और नेता जीता,शोषण को आधार मिला
वक्त नहीं बीता है अब भी वक्त की कीमत जान लो
धरती बाँटी, सागर बाँटा,मत बाँटो इन्सान को...
प्रजातंत्र में प्रजा को लुटे, ये कैसी सरकार है
लाठी,गोली,ईश्वर,अल्लाह, ये सारे हथियार है
इनसे बचो और बच के रहो,और लडकर इनसे जीत लो
हक है तुम्हारा चैन से रहना, अपने हक को छीन लो
अगर हो शैतानी से तंग, खत्म करो शैतान को
धरती बाँटी, सागर बाँटा,मत बाँटो इन्सान को...
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11 इसलिए राह संघर्ष….
इसलिए राह संघर्ष की हम चुने
जिंदगी आसुओं से नहाई न हो
शाम सहमी न हो, रात हो ना डरी
भोर की ऑख फिर डबडबाई न हो
इसलिए...
सूर्य पर बादलों का ना पेहरा रहे
रोशनी रोशनाई में डूबी न हो
यूँ ना ईमान फुटपाथ पर हो खडा
हर समय आत्मा सब की उबी न हो
आसमान में टंगी हो न खुशहालियाँ
कैद महलों में सबकी कमाई ना हो
इसलिए...
कोई अपनी खुशी के लिए गैर की
रोटियाँ छीन ले हम नहीं चाहते
छीनकर थोडा चारा कोई उम्र की
हर खुशी बिन ले हम नहीं चाहते
हो किसी के लिये मखमली बिस्तरा
और किसी के लिए एक चटाई न हो
इसलिए...
अब तमन्नाएँ फिर न करे खुदकुशी
ख्वाब पर खौंफ की चौकसी ना रहे
श्रम के पावों में हो ना पडी बेडियाँ
शक्ति की पीठ अब ज्यादती ना सहे
दम ना तोडें कहीं भूख से बचपना
रोटियों के लिए अब लडाई न हो
इसलिए...
--आंदोलन के गीत
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12 बेटी हूँ मैं बेटी…
बेटी हूँ मैं बेटी , तारा बनुँगी,
तारा बनुँगी मैं सहारा बनुँगी
बेटी हूँ मैं......
गगन पे चमके चंदा मैं धरती पे चमकुँगी
धरती पे चमकुँगी मैं उजियारा बनुँगी
बेटी हूँ मैं......
लिखुँगी, पढुँगी मैं मेहनत भी करूँगी
अपने पावो चलकर दुनिया को देखुँगी
दुनिया को देखुँगी मैं दुनिया को समझुँगी
बेटी हूँ मैं......
फूल जैसी सुंदर, बागों में खेलुँगी
तितली बनुँगी मैं हवा को चुमुँगी
हवा को चुमुँगी मैं नाचुँगी गाऊँगी
बेटी हूँ मैं......
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13 ले मशाले चल पडे है…
ले मशाले चल पडे है लोग मेरे गांव के
अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के
पूछती है झोँपडी और पूछतेँ है खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गांव के
चीखती है हर रुकावट ठोकरों की मार से
बेडिया खनका रहे है लोग मेरे गांव के
बिन लडे कुछ भी यहाँ मिलता नही ये जानकर
अब लडाई लड रहै लोग मेरे गांव के
देख याराँ जो सुबह लगती थी फीकी आज तक
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गांव के
लाल सुरज अब उगेगा देश के हर गांव मे
अब इकठ्ठे हो चले हैं लोग मेरे गांव के
--वल्लीसिह चीमा
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